मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

हलो जगदीश्वर !!

               

             
 रेगिस्तान पार करते आज तीसरी सुबह हो रही थी . लगा कि वह रास्ता भटक गया है, पिछले छत्तीस घंटों में उसे कोई दिखा नहीं, न इंसान , न पशु -पक्षी.... और तो और सांप-बिच्छु भी नहीं. उसे रह रह कर घबराहट सी होने लगी .
                 अचानक एक जगह काँटों वाली नागफनी का समूह दिख पड़ा. पास जा कर देखा  तो काँटों के बीच एक फूल खिल रहा था . वह फूल को देखता रहा, उसे बहुत राहत महसूस हुई   .... अचानक मुस्कराते हुए बोला -- " हलो जगदीश्वर !!"

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