मंगलवार, 2 अगस्त 2011

जनता ने दिए खड़ाऊं !

‘‘ आपकी पार्टी संस्कारों और अनुशासन  वाली पार्टी है । दूसरी पार्टियों में जूते चले तो चले ..... पर आपके यहां भी !! ’’ पत्रकार ने पूछा ।
‘‘ सुधार कीजिये , जूता नहीं खड़ाऊं । ’’ भाई जी ने कहा ।
‘‘ ठीक है , आपके यहां खड़ाऊं मारी गई । ’’
‘‘ मारी नहीं गई , उछाली गई । सुधार कीजिये । ’’ 
‘‘ एक ही बात है भाई जी । ’’
‘‘ एक कैसे है !? .... रामजी ने भरत को अपनी खड़ाऊं दी थी । भरत ने उन्हें गद्दी पर रख कर रामजी के नाम से राज चलाया ...... । ..... सुधार कीजिये  ’’
‘‘ हां , चलाया , तो ? ’’
‘‘ तो क्या ! अरे भई इधर भी जनता ने अपने खड़ाऊं दिये हैं ...... कि  ल्लो .....  गद्दी पर रखो ....... और जनता के नाम पर राज करो मजे में ।  इसमें गलत क्या है ?! आप सुधार कीजिये  . ’’ भाई जी ने भगवान  के फोटो को प्रणाम करते हुए जवाब दिया ।

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