मंगलवार, 16 अगस्त 2011

अनुकंपा नियुक्ति


         सरकार ने अनुकंपा नियुक्ति सरल बनाने की घोषणा की । तय किया गया कि कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके परिवार के एक बेरोजगार को तुरंत नियुक्ति मिलेगी ।
       जगदीश्वर  के पडौसी विश्वजीत सिंह शाम  को घबराए से आए , बोले -     ‘‘ जगदीश्वर क्या तुम अपने यहां मुझे रात रुकने दोगे ? प्लीज ! ’’
      ‘‘ हां हां , क्यों नहीं । एक क्या दो रातें रुको । ’’जगदीश्वर बोले .
      ‘‘ एक - दो नहीं , मुझे हर रात तुम्हारे यहां गुजारना पड़ेगी । कहोगे तो किराया दे दूंगा । ’’
      ‘‘ बात क्या है आखिर !!? तुम इतने डरे हुए क्यों लग रहे हो ? !’’
      ‘‘ सरकार ने अनुकंपा नियुक्ति सरल कर दी है । मैं बैठे बिठाए खतरे में आ गया हूं । ’’
      ‘‘ अनुकंपा नियुक्ति से तुम्हें खतरा !! किससे ? ’’
      ‘‘ अपने दो बेरोजगार बेटों से । ’’

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

देशहित में !


     त्योहार पर अस्पतालों के लिए एक दिन के अवकाश  का बहुत आग्रह हुआ तो स्वास्थ्य मंत्री ने जगदीश्वर  से पूछा कि स्वास्थ्य सेवकों को एक दिन की छुट्टी दे दें ?
            जगदीश्वर  बोले - ‘‘ आप मालिक हैं अपने विभाग के । दे कर देख लो । ’’

            मंत्री ने एक दिन का अवकाश  घोषित कर दिया । सारे डाक्टर-नर्स छुट्टी पर चले गए ।

            दूसरे दिन पता चला कि मरने वालों की संख्या शून्य  के करीब चली गई । प्रदेश  के श्मशानों  से धुंआ नहीं उठा ।

            मंत्रीमंडल की बैठक हुई और देश हित को ध्यान में रखते हुए भविष्य में चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में पूर्ण अवकाश  पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया ।



अतीत का बक्सा !


           लल्लन तहखाने में उथल-पुथल मचाए थे । जगदीश्वर  को पता चला तो प्रकट हुए, पूछा - ‘‘ क्या ढूंढ़ रहे हो लल्लन ? ’’
‘‘ अपना अतीत, पता नहीं अम्मा बक्सा कहां रख गईं ! ’’
‘‘ अतीत से तो तुम दुःखी थे ! क्या करोगे उसका ?’’
‘‘ भविष्य बनाने वाला जिन्न उसमें छुपा बैठा है । ’’
‘‘ पत्नी से पूछो, शायद  उसे पता हो । ’’
लल्लन ने पत्नी राबीना को आवाज लगाई । वे बोलीं - ‘‘ यहां शहर  में कहां है वो बक्सा , वह तो गांव के मकान में पड़ा होगा कहीं । ’’
‘‘ छोड़ो लल्लन, वैसे भी तुम उससे मुक्ति ही चाहते थे । ’’ जगदीश्वर  बोले ।
‘‘ नहीं जगदीश्वर, मुझे फौरन गांव जाना होगा । ... आज के युग में अतीत के बिना भविष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है । ’’

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

बंटी का फैसला !

माता-पिता को बेटे के भविष्य की चिंता सता रही थी । भविष्य की चिंता यानी धन की चिंता । कैसे कमाएगा, सुरक्षित कैसे रहेगा, सम्मान कैसे बचा रहेगा आदि ।
‘‘ बंटी राजनीति में जाएगा । बस फायनल । ’’ पिता ने फैसले जैसा कुछ सुनाते हुए कहा ।
‘‘ नहीं , बंटी धर्म के क्षेत्र में अपना करियर बनाएगा । बाबा लोग अब करोड़ों में खेलते हैं, सम्मान और सुरक्षा की भी गारंटी होती है । ’’ मां ने कहा ।
‘‘ बेटे को बाबा बनाओगी !! बाबा !! .... मेरा बेटा बाबा नहीं बनेगा । साफ बात । ’’ पिता को गुस्सा आ गया ।
‘‘ तुम्हें पता भी है कि बाबा ही हैं जो संसार के सारे सुख भोगते हैं । ’’ मां अडी ।
दोनों में बहस बढ़ गई तो तय हुआ कि बंटी से पूछ लेते हैं ।
पिता ने बेटे को बुलाया - ‘‘ बेटा तुम्हारे भविष्य को लेकर हम चिंतित हैं । तुम क्या बनोगे जिसमें धन, सम्मान और सुरक्षा तीनों हो । ’’
‘‘ मैं कामरेड बनूंगा डैड । ’’ कह कर बंटी चल दिया ।

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रविवार, 7 अगस्त 2011

* पद में !

" पद्मे .... सुनों पद्मे .... . " भीड़ के बीच पतिदेव ने पत्नी को पुकारा . सुनते ही पत्नी उनके साथ हो ली .
जब वे लोग चले गए तो देवी ने जगदीश्वर से शिकायती लहजे में कहा - " देखा उन्हें !!! .... अपनी पत्नी को कितने प्रेम से पुकारते हैं ! .... पद्मे .... !  एक आप हैं ...जब देखो आम आदमी की तरह - 'सुनती हो .....सुनती हो' . " 
जगदीश्वर बोले -   " हम प्रेम से पुकारते है देवी ! ...... , अन्यों के लिए जो पदमा है , उनके लिए वो पद-में है.   और ये बात वे उस बेचारी को हर क्षण याद दिलाते रहते हैं.   ..... मनुष्य बहुत शिक्षित और जटिल हो गया है देवी .                     
                                                                 इनसे भ्रमित मत होना . "

बुधवार, 3 अगस्त 2011

* पछतावा !!


                    रात ग्यारह बजे एक (सामान्य) आदमी ने अपनी पत्नी को पीटा और घर से बाहर कर दरवाजा बंद कर लिया । उस औरत को विश्वास था कि उसका प्रेमी तुरंत आ कर उसे सम्हाल लेगा । प्रेमी तो नहीं आया, मोहल्ले का गुण्डा नशे मे धुत्त कहीं से लौट रहा था । उसने देखा तो पूरे सम्मान के साथ उसे ले जा कर अपने घर में शरण  दी । 
          दूसरे दिन सुबह जब तीनों का नशा  उतरा तो उन्हें अपनी अपनी भूल का ज्ञान हुआ । तीनों के मन में पछतावा था, लेकिन .......
                           .........सबसे ज्यादा  उस औरत के मन में  ।

* अख़बार में भगवान .



               रामनवमी भगवान राम का जन्मदिन है सो अखबार के मुख्य पृष्ठ पर राम का बड़ा सा चित्र छापा जा रहा था । लेआउट को अंतिम रूप  दिया जा चुका था कि एक बड़ा विज्ञापन आ गया । कंपनी चाहती थी कि आज रामनवमी के तमाम आफर  के साथ विज्ञापन अखबार के मुखपृष्ठ पर ही छपे । इसके लिये ऊँची  दर पर भुगतान करने को वह तैयार थी । लेकिन संपादक राजी नहीं हुए । 
            कंपनी के आदमी ने मालिक से संपर्क किया ।
            मालिक ने तुरंत आदेश  दिया कि विज्ञापन मुखपृष्ठ पर छापा जाए और भगवान को दूसरे किसी पृष्ठ पर बिना किसी विज्ञापन को हटाए उपलब्ध जगह हो तो दे  दें ।
           ‘‘ खबरों को हटाया नहीं जा सकता है , विज्ञापन हटाना नहीं है , फिर तो कठिन है । ’’ संपादक ने कहा ।
          ‘‘ ठीक है , तो फिर भगवान को हटा दो , विज्ञापन जाने दो वही हमारे भगवान हैं । ’’

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

जनता ने दिए खड़ाऊं !

‘‘ आपकी पार्टी संस्कारों और अनुशासन  वाली पार्टी है । दूसरी पार्टियों में जूते चले तो चले ..... पर आपके यहां भी !! ’’ पत्रकार ने पूछा ।
‘‘ सुधार कीजिये , जूता नहीं खड़ाऊं । ’’ भाई जी ने कहा ।
‘‘ ठीक है , आपके यहां खड़ाऊं मारी गई । ’’
‘‘ मारी नहीं गई , उछाली गई । सुधार कीजिये । ’’ 
‘‘ एक ही बात है भाई जी । ’’
‘‘ एक कैसे है !? .... रामजी ने भरत को अपनी खड़ाऊं दी थी । भरत ने उन्हें गद्दी पर रख कर रामजी के नाम से राज चलाया ...... । ..... सुधार कीजिये  ’’
‘‘ हां , चलाया , तो ? ’’
‘‘ तो क्या ! अरे भई इधर भी जनता ने अपने खड़ाऊं दिये हैं ...... कि  ल्लो .....  गद्दी पर रखो ....... और जनता के नाम पर राज करो मजे में ।  इसमें गलत क्या है ?! आप सुधार कीजिये  . ’’ भाई जी ने भगवान  के फोटो को प्रणाम करते हुए जवाब दिया ।