गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

भाग्य की रेखाएँ




सिंदूर पुते जगदीश्वर पेड़ के नीचे बैठे खुली हवा का आनंद ले रहे थे कि एक युवक पीड़ा की अवस्था में आया, - “प्रभु इस हाथ को जोड़ दो, जोड़ दो प्रभु ।“
जगदीश्वर चौंके , - “ये कैसे हुआ ! ?”
“भीड़ ने किसी गलत फहमी के कारण हिंसा की और ये हाथ कट गया । जोड़ दो जगदीश्वर ।“  युवक ने कटा हाथ आगे कर आग्रह किया ।
“ये तो मेरे बस की बात नहीं है युवक । तुम्हें फौरन किसी डाक्टर के पास जाना चाहिए ।“ जगदीश्वर ने सलाह दी ।
युवक नहीं माना, - “ये कैसे हो सकता है !! आपने तो हाथी का सिर जोड़ दिया था अपने पुत्र पर !”
“वो तो सिर्फ कथा है, तुम डाक्टर के पास जाओ । “
“ठीक है , डाक्टर के पास जाता हूँ । “ अचानक वह ठिठका, बोला – “कटे हाथ में भाग्य की रेखाएँ कितनी देर तक जिंदा रहती हैं ?”

बुधवार, 11 नवंबर 2015

विमान !!

                       
                     लाला धरमदास घबराए से मंदिर में दौडे़ आए, जगदीश्वर की ओर हाथ उठा कर बोले- ‘‘ ये क्या जगदीश्वर !! ..... मैंने हमेशा  आपकी सेवा की, कभी आपसे बड़ी बड़ी चीजें नहीं चाही। जब भी मांगा तो बस इतना कि अंत समय आ गया है, छोटा बड़ा एक विमान भेज देना और बुलवा लेना। ..... बस इतना सा  ही !!.......  लेकिन ये क्या मजाक है !! ’’
                     ‘‘ हुआ क्या ?! बड़े परेशान लग रहे हो लाला!!’’ जगदीश्वर ने पूछा।
                    ‘‘ जांच में पता चला है कि मुझे कैन्सर है !! मैंने विमान की कामना की थी और आपने ये क्या दे दिया ?! ...... जानलेवा बीमारी !!’’
                    ‘‘ विमान तो यही है लाला .... तुम्हारी समझ का फेर है बस ।’’ जगदीश्वर मुस्कराए।
                                                                          ----------

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

जगदीश्वर का भाग्य !!

                 
     जगदीश्वर के सामने दो  बूढ़े रोज शाम दर्शन  करने आते हैं।दर्शन  तो ठीक है, शिकायतों का अंबार लगाते हैं। जगदीश्वर  को दोषते हैं, कभी किस्मत को कोसते हैं। हमेशा  अपने दुःख-दर्द का रोना।
                       बात उनदिनों की है जब उत्तराखण्ड का प्रलय  हो चुका था। हजारों लोग फंसे, सैकड़ों लापता हुए। कष्ट इतने कि सुनने वालों के प्राण लप्प-धप्प करने लगें। टीवी पर खबरें और दृष्य देख कर तो जान ही सूख गई। 
                    शाम को दोनों आए। बोले- ‘‘ हे जगदीश्वर  तेरा लाख लाख शुक्र  है, हमें वो सब नहीं भोगना पड़ा। तुम्हारे कारण हम यहां सुरक्षित और सुखी हैं। हम सौभाग्यशाली हैं। हम अपनों के साथ हैं, परिवार में हैं। सब कुशल है, कृपा है तुम्हारी। ऐसा ही बनाए रखना प्रभु। ’’
                      उनके जाने के बाद जगदीश्वर देवी से बोले - ‘‘ मैंने तो कुछ भी नहीं किया !! फिर भी लोग मेरे कारण अपने को दुःखी और कुछ अपने को सुखी महसूस कर रहे हैं !!
                   देवी क्या कहतीं, बोलीं-‘‘ कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए ये अफवाह फैला रखी है कि आपकी की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है।’’
                     ‘‘ किन्तु ये अफवाह है, षड़यंत्र है। ..... तुम तो जानती हो देवी !’’
                    ‘‘ भाग्य के लिखे का आप स्वयं भी क्या कर सकते हो जगदीश्वर  ।’’
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बुधवार, 27 मई 2015

घर किसका ?


जब घर खरीदने के इच्छुक यहां-वहां, आगे-पीछे सब देख कर कीमत कूत रहे थे तो मन विचलित होने लगा, बेचें या नहीं बेचें। शाम तक मन असमंजस में रहा तो जगदीश्वर  के द्वार पर पहुंचे। कहा कि घर बेचना है लेकिन मन में अजीब सी उहापोह मची हुई है।
‘‘ घर ! किसका ?’’ जगदीश्वर ने पूछा ।
‘‘ मेरा घर। बेचना है।’’
‘‘ तुम्हारा घर !! तुम्हारा घर कहां ?’’
‘‘ मेरा घर प्रभु, जिसमें मैं रहता हूं।’’
‘‘ उसमें तो और भी कई प्राणी  रहते हैं। ..... कुछ पंछी, चीटियां, मकड़ी, छिपकली, चूहे, छछूंदर .....’’
‘‘ परिहास कर रहे हो जगदीश्वर।’’
‘‘ परिहास नहीं कर रहा। वो घर दूधवाले का भी है, सब्जी वाले, अखबार वाले का भी। रद्दीवाला, स्तरी करने वाला, सफाई करने वाला तमाम हैं जिनका वो ‘घर’ है। कामवाली बाई से पूछो, वो साफ कहेगी कि ‘मेरा घर है’। ’’
‘‘ सो तो ठीक है, लेकिन ....... ’’
‘‘ और तुम्हारे पुरखे भी तो रहते हैं उसमें। क्या उनका घर नहीं है ?’’
‘‘ आप मुझे भ्रमित कर रहे हैं जगदीश्वर ।’’
‘‘ तुमने पूछा इसलिए बता रहा हूं। ...... और सुनो, वो घर मेरा भी है। रोज अगरबत्ती लगा कर किससे प्रार्थना करते हो ?’’
‘‘ फिर .... !?’’
‘‘ तुम अपना घर बेच सकते हो, ये सामूहिक संपत्ती है। जाओ इसकी रक्षा करो। ’’ कह कर जगदीश्वर चुप हो गए।
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शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

सत्यान्वेषण .......

           
    जगदीश्वर  देवी के साथ भ्रमण पर थे। तालाब किनारे एक धीर-गंभीर, सौम्य युवक पेड़ के नीचे बैठा जल में उठ रही तरंगों को देख रहा था। देवी की दृष्टि उस पर अटक गई, बोलीं-- ‘‘स्वामी, इस युवक को देखो ..... चिंतक सा लग रहा है ! इस आयु वाले आजकल माॅल में घूमते हैं, हुक्काबार में बैठते हैं, मदिरालय में अपना भविष्य और पिता का धन बरबाद करते हैं, टीवी-इंटरनेट से चिपके बैठे अपना समय नष्ट करते हैं। किन्तु जरा देखो नाथ ये यहां बैठा कुछ सोच-विचार कर रहा है !! इसे आपका आशीर्वाद मिलना चाहिए, .... प्रभु इसे समर्थ बनाइए, यह जो भी इच्छा करे, तथास्तु कहिए। ’’
                      ‘‘ रहने दो देवी, इसे मुझसे कुछ चाहिए होगा तो मंदिर में आ कर मांग लेगा। ’’  जगदीश्वर ने आनाकानी की।
                  ‘‘ ये जरूर आया होगा, किन्तु भीड़ के कारण आपने संज्ञान नहीं लिया होगा। चलिए ना , अभी आप फुरसत में भी हैं।’’ देवी ने हमेशा  की तरह जिद की।
                 विवश जगदीश्वर प्रकट हुए। मांगने को कहा तो युवक बोला -‘‘ मुझे अपूर्व ज्ञान दीजिए प्रभु, ऐसा ज्ञान जिससे मैं सत्यान्वेषण कर सकूं।’’
                ‘‘ तुम समृद्धि मांगो युवक, सुख-सुविधाएं मांगो, सांसारिक सफलता मांगो, आमोद-प्रमोद और आनंद मांगो .... पर यह मत मांगो ...। ’’ जगदीश्वर ने युवक के सामने विकल्प रखे।
               ‘‘ नहीं जगदीश्वर, मुझे ज्ञान-शक्ति  ही चाहिए। ’’ युवक नहीं माना।
              देवी ने जगदीश्वर से फुसफुसा कर कहा -‘‘ दे दो ना। ’’
              जगदीश्वर बोले - ‘‘जोखिम मत उठाओ देवी, .... मैं अपने प्रतिकूल आशीष  कैसे दे सकता हूं ! ’’


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सोमवार, 18 अगस्त 2014

उल्लू

                         
         रोज अंधेरा होते ही एक उल्लू  मंदिर के गुंबद पर बैठ जाता। परेशान  लोग अपशगुन मान कर उसे उड़ाते लेकिन वह हठी, उड़ जाता पर कुछ देर बाद वापस लौट आता। एक बार देर रात उसे मौका मिल गया। जगदीश्वर  खुली हवा में टहल रहे थे, वह उनके सामने आया, --‘‘ मेरी समस्या का समाधान कीजिए जगदीश्वर।’’
‘‘ पूछो लक्ष्मीवाहक, क्या बात है ?’’
‘‘ जगदीश्वर, मेरे पुरखे आस्ट्रेलिया  के थे इसलिए वे आस्ट्रेलियन  कहलाए। मेरे कुछ बंधु जर्मनी में हैं वे जर्मन कहलाते हैं। अमेरिका में रहने वाले मेरे भाई अमेरिकन हैं। तो में हिन्दुस्तान में रहने वाला हिन्दू क्यों नहीं हूं !?’’
जगदीश्वर मुस्कराए, बोले -‘‘ तुम हिन्दुस्तान में हो इसलिए बेशक हिन्दुस्तानी हो। लेकिन हिन्दू नहीं उल्लू हो। .....  हिन्दुस्तानी उल्लू ।’’ 
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मंगलवार, 1 जुलाई 2014

मदद !

     
              जन्मदिन पर भियाजी दलबल के साथ मंदिर पहुंचे, पूजन किया और हाथ जोड़ कर जगदीश्वर  से कहा कि - ‘‘ मैं नगर में एक अंधशाला खोलना चाहता हूं । आप मदद कीजिए । ’’
                     जगदीश्वर बोले - ‘‘ नगर में कोई अंधा तो है नहीं !! फिर क्यों .... ?! ’’
                    ‘‘ इसीलिए तो आपकी मदद चाहिए प्रभु । .... जनमदिन मनाने के लिए एक अंधशाला तो हर बड़े नेता के लिए जरूरी है । 
  

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बुधवार, 11 जून 2014

तुम्हारे लिए !

             
    कवि लंबे समय से तनाव और दुःख में चल रहा था। दिन-ब-दिन उसकी निराशा  बढ़ती जा रही थी। आखिर एक दिन उसे लगा कि ये संसार रहने काबिल नहीं है। शांति  और मुक्ति का एक मात्र मार्ग मृत्यु ही है। उसने आत्महत्या का निश्चय किया। बाजार से रस्सी ले कर लौट रहा था कि मंदिर दिख पड़ा। मन हुआ कि चलो आखरी बार जगदीश्वर  से रू-ब-रू हो लिया जाए।
            जगदीश्वर घूप-अगरबत्ती के घुंए में बैठे थे। नारियल के पानी से मिल कर बासी फूल-पत्तों से दुर्गन्ध आ रही थी। प्रसाद के मीठे से आसपास चीठा हो रहा था। धुंआए गर्भगृह में बल्ब की कुंद  रौशनी घुटन पैदा रही थी। कैसे जी रहे हैं जगदीश्वर !! कवि को लगा कि किसी तरह इन्हें भी मुक्ति का मार्ग पकड़ना चाहिए।
‘‘ कैसे आना हुआ कविराज ?’’ ध्यान गया तो जगदीश्वर ने पूछा।
‘‘ तंग आ गया हूं तुम्हारे इस संसार से। अब सहन नहीं होता मुझसे। मैंने तय कर लिया है कि अब आत्महत्या करूंगा। ’’ कवि ने नई खरीदी रस्सी दिखाते हुए कहा।
‘‘ ठीक है, कर लो। ..... मरने के बाद मैं तुम्हें अपने पास बुला लूंगा। हम दोनों यहाँ साथ ही रहेंगे। .... जाओ, जल्दी मरो । ’’ जगदीश्वर ने प्रसन्न हो कर आज्ञा दे दी।
कवि बाहर खुली हवा में निकला ...... और मयखाने में जा कर बैठ गया। जाम आया तो थोड़ी सी शराब छलका कर बोला - ‘‘ जगदीश्वर ...... तुम्हारे लिए। ’’

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मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

किस्मत का दरवाजा


                   जगदीश्वर सो चुके थे . आधी रात को एक नौजवान नशे में धुत्त आया और घंटियाँ बजने लगा . जगदीश्वर को उठाना पड़ा.
                 युवक नाराज था, बोला --" मैं सात भाइयों में छोटा हूँ . ना मुझे ठीक से खाना मिला, ना ही पढाई -लिखाई हुई, कोई हुनर भी सीख नहीं पाया. मेहनत बनती नहीं, कोई पूछता नहीं . ना शक्ल सूरत है ना इज्जत. तू सबके किस्मत के दरवाजे खोलता है . मैंने क्या बिगाड़ा था तेरा !! एक दरवाजा मेरे लिए नहीं खोल सकता था !? "
                  " गुस्सा मत करो युवक .... तुम्हारे लिए एक दरवाजा खोल रखा है मैंने ."
                  " कौन सा !!?" नौजवान चौंक पड़ा.
                  " राजनीति का, .... जाओ किसी नेता के पीछे हो लो . " कह कर जगदीश्वर वापस सो गए .


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हलो जगदीश्वर !!

               

             
 रेगिस्तान पार करते आज तीसरी सुबह हो रही थी . लगा कि वह रास्ता भटक गया है, पिछले छत्तीस घंटों में उसे कोई दिखा नहीं, न इंसान , न पशु -पक्षी.... और तो और सांप-बिच्छु भी नहीं. उसे रह रह कर घबराहट सी होने लगी .
                 अचानक एक जगह काँटों वाली नागफनी का समूह दिख पड़ा. पास जा कर देखा  तो काँटों के बीच एक फूल खिल रहा था . वह फूल को देखता रहा, उसे बहुत राहत महसूस हुई   .... अचानक मुस्कराते हुए बोला -- " हलो जगदीश्वर !!"

शुक्रवार, 21 मार्च 2014

रोज नई आरती

       
       
हार कर हरद्वारी प्रसाद ने मंदिर आना बंद कर दिया. महीनों गुजर गए, एक दिन रास्ते में टकराए तो जगदीश्वर ने पूछा - "क्यों हरद्वारी ! बहुत समय हुआ तुम मंदिर नहीं आये ?"
              "क्या करूँ आ कर !, आप  मेरी तरफ ध्यान ही कहाँ देते हो ! " हरद्वारी ने शिकायत की .
              " ध्यान तो तभी दे पाउँगा जब तुम आते रहोगे ."
              "आता तो रहा था, आरती भी रोज करता था . पर लगता है आपको आरती की आदत पड़ गई है, आप आरती व्यसनी हो गए हो ."
              " आरती व्यसनी मैं नहीं आरती करने वाले होते हैं. रोज रोज एक बेसुरी, फूहड़ और कर्कश आरती सुनना मुझे भी अच्छा नहीं लगता है ." जगदीश्वर ने आपनी पीड़ा बताई .
              " अब रोज नई आरती कहाँ से आयेगी आपके लिए !!?"
              " गरज से बड़ा गुरु कोई नहीं है. ............अपने बॉस के सामने
रोज नई आरती कैसे गा लेते हो !?"

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सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

रचनाकारों के बीच रिश्तेदारी !

                 
जगदीश्वर भोर में टहलते हुए घाट की ओर निकल आये . देखा एक व्यक्ति पूर्व की ओर मुख किये पाषण-प्रतिमा बना बैठा है !! पूछा - "कौन हो तुम ?"
" लोग मुझे कवि जानते हैं ." उसने कहा.
" अच्छा !! .... मैं जगदीश्वर हूँ ... जगदीश्वर , स्रष्टि को रचने वाला ."
" हूँ ..... लोग ऐसा ही समझते हैं ."
" लोग समझते है !!! तुम नहीं समझते !? ... सब मुझे परमपिता मानते है ... तुम ?"
जगदीश्वर को बुरा लगा .
" लोगों का मानना ही बड़ी बात है ."  कवि बोला .
" तुम भी मान सकते हो .....मुझे खुशी होगी पुत्र ."
" रचनाकारों के बीच रिश्तेदारी महत्वपूर्ण नहीं होती है जगदीश्वर . "
जगदीश्वर कुछ कहना चाहते थे, लेकिन  बोले नहीं .
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बुधवार, 24 जुलाई 2013

तुम यहां !!!


              प्राकृतिक आपदा से हजारों तीर्थयात्री मारे गए, मंदिर नष्ट हो गया, बस्तियां उजड़ गई, पूरा देवधाम वीरान हो गया ।
           मातादीन भी सपरिवार देव-दर्शन और पुण्य कमाने के लिए गए थे, किन्तु दुर्भाग्य .... उनका कोई बच नहीं पाया। दुःख का पहाड़ ढ़ोते वे किसी तरह रोते, गिरते-पड़ते घर पहुंचे। भारी मन से दरवाजे का ताला खोला। 
           अंदर देखते ही उनकी चीख निकल गई - ‘‘ जगदीश्वर  तुम !! ...... यहां !! ..... यहीं थे क्या?!’’
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मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

घर जलाओगे क्या !!


  एक बार लिखने बैठा, पेन निकला तो दिल निकल आया धप्प से , उछल कूद करने लगा सामने . मुट्ठी भर का .... छोटा सा .. धधकता हुआ .... साबुत लाल-अंगार  दिल .
मैनें उससे कहा - कबख्त ! .... यहीं हो ! ... हुए नहीं किसी के अब  तक !?
वह  बोला - व्यंग्यकार का हूँ ..... जो हाथ लगाता है .....उसे फफोले पड़ जाते हैं .....
मुझे अच्छा तो नहीं लगा ..... फिर भी उससे कहा - चल अपन खेलते हैं ...
अब ये प्रतिदिन  का किस्सा हो गया ..... अपने दिल के साथ खेलना ..... हर दिन दिवाली.
पत्नी रोज ही कहती है - बस भी करो ...... घर जलाओगे क्या !!!!!

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

* बहुमुखी


              वे जिससे मिलते उसी के हो जाते हैं । कांग्रेसियों के आगे वे गांधी से गांधी  तक बिछ पड़ते हैं । भाजपाइयों के सामने जाते हैं तो लगता कि सजिल्द वेद-पुराण हो गए और न केवल मंदिर वहीं बनाएंगे बल्कि पहली पूजा भी वही करेंगे । कामरेडों के समक्ष ‘मार्क्स -चालीसा’ का इतना जाप करते कि वे बिना बात ‘जो हमसे टकराएगा , मिट्टी में मिल जाएगा’ चीखने लगते । अमीर के सामने स्वर्णाभूषण से चमकते, तो गरीब को देख दयावंत हो उठते । वे गीली मिट्टी  की तरह हैं , जो उन्हें छू देता उसी के हाथ के निशान  उन पर दिखने लगते । न उनका रंग है न ही कोई आकार । वे जल की तरह जिस बरतन में गिरते वैसे ही बन जाते हैं ।  सामने पड़ जाए तो पत्नी को प्रेम करते हैं लेकिन प्रेमिका की याद आते ही उसके हो जाते हैं । प्रेमिका अब साठ पार कर चुकी है, किन्तु छुपके-चुपके अब भी दोनों में बातें होतीं है । उसके बच्चों और नाती-पोतों की चर्चा करते हैं तो समझते हैं कि उन्हीं के हैं । इधर उनके बच्चे और नाती-पोते तो उनके हैं ही । हरेक के लिये उनके पास एक मुख है । वे बहुमुखी हैं । उनका कोई एक साफ चेहरा आज तक नहीं बन पाया है ।  जैसा कि जगदीश्वर, वो सबका है , इसीलिये किसीका नहीं है ।
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सोमवार, 10 सितंबर 2012

विवशता !


                     मंदिर में देर रात कुछ लोग मुंह ढंके जगदीश्वर  के सामने आए । पूजन किया, भेंट चढ़ाई और बोले - ‘‘ हम डाकू हैं । इस समय गांव में डाका डालने जा रहे हैं । हे जगदीश्वर ......  आप कृपा कर हमें आशीर्वाद  दीजिए कि तगड़ा माल लूटने को मिले । ’’
                   जगदीश्वर  ने कहा - ‘‘ तथास्तु । .... सफल भव । ’’
                   डाकू चले गए । पास बैठी देवी कुछ समझ नहीं पाईं । वे घूरने लगीं .
                   जगदीश्वर  बोले - ‘‘  घूरो मत , ..... सदा सच बोलने वालों का साथ देना और सहायता करना मेरी विवशता है देवी । ’’

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रविवार, 2 सितंबर 2012

इकतालीसवां चोर !



                       ‘‘ जगदीश्वर  !! क्या तुम्हें कुछ दिखता नहीं है !! ये तुम्हारी आंखों के सामने क्या चल रहा है ! ये .... ये लोग बेईमान हैं , झूठे हैं , लुच्चे हैं,  किसी का लिहाज नहीं है इनको ! ..... रात-दिन अपना घर भरने में लगे हैं ! .... सात-सात पीढ़ियां खाएं  इतना जमा कर लिया है इन्होंने ! ... इन्हें शरम भी नहीं आती !! ... इन्हें यह डर भी नहीं है कि कल तुम्हें मुंह  दिखाना पड़ेगा ! ... लेकिन तुम तो यहां मस्त पड़े हो ! तुम्हारी कोई जिम्मेदारी है या नहीं ? ! .... मैं तुम्हारा बहिष्कार करूंगा ... तुम्हारे दर्शन  को नहीं आउंगा .... तुम्हारी पूजा भी नहीं करूंगा ... ’’ । वह नाराज आदमी पैर पटकता हुआ चला गया ।
              भौंचक जगदीश्वर  ने परदे के पीछे खड़े भक्त से पूछा - ‘‘ इसे जानते हो ? .... ये कौन था ? ’’
              ‘‘ जानता हूं जगदीश्वर  , ... ये इकतालीसवां चोर है । ’’ अलीबाबा ने उत्तर दिया ।
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रविवार, 26 अगस्त 2012

जगदीश्वर के एवजी

   पंडित जी से पता चला कि उनके घर में जगदीश्वर अतिथि होने वाले हैं । पत्नी ने कहा - ‘‘ बड़े भाग्य हमारे । लेकिन अतिथि को खिलाएंगे क्या ? ! पहला मौका है कुछ सूझ नहीं पड़ रही है । दूसरों से राय ले लो तो पता चले । ’’
                   पति सोच में पड़ गया कि किससे राय लें ! पत्नी ने फिर हड़काया - ‘‘ जरा बाहर निकलो, जो मिले उससे राय लेना । कोई भी बता देगा । ’’
                  अनमना पति बाहर निकला, बाड़े में गाय बंधी थी । सोचा गायमाता से राय लेना ठीक रहेगा, पूछा - ‘‘ घर में अतिथि आने वाले हैं, उनका सत्कार कैसे करूं ? ’’
                      ‘‘ अच्छी ताजी घास खिलाओ ... हरी हरी । ’’ गाय ने कहा ।
                  पति खुश  हुआ, ..... सामने तोता था पिंजरे में । सोचा एक से भले दो, इससे भी राय ले लें ।
                   तोते ने कहा -  ‘‘ एक अमरूद और दो-तीन हरी मिर्च से उत्तम कुछ नहीं है । ’’
                  पास में ही एक जोड़ा पालतू कबूतर गुटर-गूं कर रहा था, उससे भी पूछा, तो बोला - ‘‘ एक मुट्ठी ज्वार के दाने से अच्छा सत्कार हो सकता है । ’’
                  बाहर की दीवार के पास रहने वाली मादा सुअर अपने बच्चों के साथ पड़ी थी, वह बोली - ‘‘ पीछे गली में छोड़ देना, ........ इससे अच्छा सत्कार संसार में कुछ नहीं है । ’’
                   पति ने लौट कर सबकी राय पत्नी को बताई तो वह भ्रम में पड़ गई । दोनों सलाह कर पंडितजी  के पास गए और  उनकी राय जानी ।
                     वर्षों हो गए, -------  पति-पत्नी प्रतिदिन भोग लगा रहे हैं और जगदीश्वर की एवज में पंडितजी स्वीकार कर रहे हैं ।
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शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

मदद !

           जन्मदिन पर भियाजी दलबल के साथ मंदिर पहुंचे, पूजन किया और हाथ जोड़ कर जगदीश्वर  से कहा कि - ‘‘ मैं नगर में एक अंधशाला खोलना चाहता हूं । आप मदद कीजिए । ’’
            जगदीश्वर बोले - ‘‘ नगर में कोई अंधा तो है नहीं !! फिर क्यों .... ?! ’’
             ‘‘ इसीलिए तो आपकी मदद चाहिए प्रभु । .... जनमदिन मनाने के लिए एक अंधशाला तो हर बड़े नेता के लिए जरूरी है ।"
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मंगलवार, 26 जून 2012

भ्रम और विश्वास

" तुम इतने समझदार हो फिर भी नशा करते हो !! ये तुम्हें शोभा नहीं देता है ! "
" तुम नहीं समझोगे .... नशे में मुझे जगदीश्वर दीखते हैं ."
" क्या मूर्खों सी बात कर रहे हो !! ..... नशे में जगदीश्वर नहीं दीखते है ... भ्रम आवश्य होता है ."
" तुम क्या कहना चाहते हो !? .... जगदीश्वर एक भ्रम हैं ? "
" मैंने कहा  कि नशे में भ्रम होता है . मानो  इस बात को . "
" चलो माना ......  किन्तु भ्रम पर विश्वास करने का कोई और तरीका है तुम्हारे पास ? "
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बुधवार, 28 मार्च 2012

वर्दी .......


                        सब-इंस्पेक्टर पाण्डे तिलमिलाया सा जगदीश्वर  के पास पहुंचा - ‘‘ देखो जगदीश्वर , वो लाल बाबा हवा में से आपकी मूर्ति निकाल कर लोगों को मूर्ख बना रहा है और ठग रहा है । इसका कुछ कीजिए । ’’
‘‘ लोगों की गलती है । उन्हें लाल बाबा की चालाकी समझना चाहिए । ’’ जगदीश्वर  बोले ।
              ‘‘ आप उसको कुछ दंड दीजिये ना ! ’’
             ‘‘ दोष लोगों का है ..... उसको दंड कैसे दिया जा सकता है ! ’’ जगदीश्वर  ने लाचारी बताई ।
‘‘ मेरे नाम से वसूली करने वाले को तो मैं इतना पीटता हूं कि वो अपना  नाम भूल जाता है और मेरा नाम जपते हुए हल्दी-चूना लगाता है ! ’’ पाण्डे बोला ।
                         ‘‘ तुम्हारे  पास वर्दी  है सब-इंस्पेक्टर पाण्डे । ’’
                                                                        ----

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

* उदार दृष्टिकोण


                  दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने का फैसला दिया तो  नैतिकतावदियों ने विरोध किया । सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिकता विरोधी याचिकाओं की सुनवाई हो रही थी । न्यायमूर्ति के सामने केन्द्र सरकार का पक्ष आया कि समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने में  उसकी सहमति है । भारतीय समाज आईपीसी लागू होने  के पहले से समलैंगिकता के मामले में अंग्रेजों से ज्यादा सहिष्णु था । उन्होंने जोर दे कर कहा कि भारत सरकार को हाई कोर्ट के फैसले में कोई कानूनी खामी नहीं मिली है और वह इसे यथारूप में स्वीकार करती है ।
               लल्लन ने समाचार सुना तो उत्तेजित हो गए - ‘‘ ये कैसी सरकार है जी !! आखिर किधर ले जाना चाहते हैं देश  को !! कहां तो गांधी जी ने ब्रहम्चर्य की शिक्षा  दी थी और कहां ये फूहड़पन !! ’’
‘‘ मजबूरी में सब करना पड़ता है भाई । ’’ विशेषज्ञ बोले .
‘‘ मजबूरी ! ....... ऐसी भी क्या मजबूरी हो सकती है !? ’’
‘‘ जानते नहीं हो क्या कि सरकार छोटे दलों के समर्थन और सहयोग से चल रही है । ...... उदार दृष्टिकोण तो रखना ही पड़ता है । ’’
                                                                   ----

बुधवार, 21 मार्च 2012

श्रेय !!



                 जगदीश्वर  दुःखी बैठे थे । लल्लन ने पूछा तो बोले - ‘‘ दुनिया मैंने बनाई है , लेकिन अब कोई श्रेय देने को तैयार नहीं है ! ’’
               ‘‘ आप भगवान हैं , दुनिया आपने ही बनाई है भला इसमें किसे आशंका  हो सकती है !? ’’ लल्लन चकित और थोड़े क्रोधित हुए ।
         ‘‘ श्रमिक दावा करते हैं कि दुनिया उन्होंने बनाई है । ’’
         ‘‘......  ! .... उनकी बात में दम तो है ...... दुनिया मजदूरों ने ही बनाई है । ’’
               ‘‘ तुम मेरे भक्त हो या श्रमिकों के वकील !? ’’
           ‘‘ लेकिन जगदीश्वर ...... श्रमिक तो आपने ही बनाए हैं ....... आप श्रमिक बनाने का श्रेय ले लो । दुनिया बनाने का अप्रत्यक्ष सहयोग ..... ।  ’’
                ‘‘ ...... । ...... । ....... । ..... नहीं । ..... पता नहीं ..... यह श्रेय है या अपराध ! ’’ जगदीश्वर  दुःखी बने रहे ।
                                                                     ---------

सोमवार, 12 मार्च 2012

भ्रष्टाचार !


                     जगदीश्वर  सो रहे थे , मध्य रात्रि में  दरवाजे पर दस्तक हुई । सोचा कोई दुखियारा होगा, उठ कर दरवाजा खोला तो देखा तमाम अफसर हैं । पता चला कि आयकर विभाग से आए हैं, जांच करेंगे यानी छापा पड़ा है ।
दो घंटे की छानबीन के बाद अफसर बोला - ‘‘ तीनों तहखाने देखने के बाद साफ होता है कि आपके पास आय से अधिक संपत्ती है । ’’

‘‘ भक्तजन चढ़ा जाते हैं । इसमें मैं क्या कर सकता हूं ! ’’ जगदीश्वर  ने आय का प्रश्न साफ  करने का प्रयास किया ।
‘‘ भक्त सौ-पचास रुपए चढ़ाते होंगे ? ’’
‘‘ नहीं , बहुत से भक्त लाखों चढ़ाते हैं .... और कुछ तो उससे भी ज्यादा । ’’
‘‘ यों ही नहीं चढ़ाते होंगे । ....... आप उन पर विशेष  कृपा करते होंगे  तभी वे लाखों चढ़ाते हैं ? ’’
‘‘ सो तो है ना । बिना विशेष  कृपा पाए कोई क्यों चढ़ाएगा ! ’’ जगदीश्वर  ने आत्मविश्वास   के साथ बताया ।
‘‘ ठीक ....... , अब आप यह भी जान लीजिए कि संसार में इसी को भ्रष्टाचार कहते हैं । ’’
अफसर ने चालान के कागज निकालते हुए कहा ।
                                                                 -----

शनिवार, 10 मार्च 2012

* कर्मफल . . . .

               अनन्य भक्त नामदास त्यागी को मौका मिला तो उसने जगदीश्वर से पूछा - " प्रभु मेरे भाग्य में कैसी म्रत्यु है ?"
" जैसी सब की होती है नामदास ." जगदीश्वर मुस्कराते हुए बोले .
" वो तो ठीक है प्रभु , पर इतना तो बताइए की मेरी म्रत्यु कैसे होगी ?" नामदास बच्चों सा हठ करने लगे तो जगदीश्वर को बताना पड़ा की - " तुम्हारी म्रत्यु पानी में डूबने से होगी ".
              तीन - चार साल बाद नामदास अस्पताल में पड़ा जगदीश्वर को पुकार रहा था . पंद्रह दिनों की पुकार के बाद आखिर जगदीश्वर को आना पड़ा .
         " ये क्या जगदीश्वर !!! ... आपने मुझसे झूठ कहा की मेरी म्रत्यु पानी में डूबने से होगी ! ... ये देखो ..... डाक्टर  कहते हैं कि मुंह का केंसर आखरी स्टेज पर है !! अब बचना मुश्किल है . ... आपने झूठ क्यों कहा !?"
       " मैनें झूठ नहीं कहा था नामदास . तुम्हारे भाग्य में म्रत्यु पानी में डूबने से ही लिखी है .... तुम्हारी ये म्रत्यु भाग्य कि नहीं कर्म कि है . मैं केवल भाग्य लिखता हूँ ..... कर्म और कर्मफल के लिए व्यक्ति स्वयं उत्तरदायी होता है . "
                                                                         _______

* स्वर्ग में लाल झंडा !

                 मंदिर में कोई नहीं था , कामरेड ने पहले फूल चढ़ाये , दीपक और अगरबत्ती जलाये , लाल -पीला कपड़ा , कुछ फल और मिठाई अर्पित की , अंत में हाथ जोड़ कर प्रार्थना करने लगे .
           जगदीश्वर चौकें ! पूछा -  " कामरेड !! .... तुम यहाँ ! सब कुशल तो है ? "
          " वृद्ध हो चला हूँ जगदीश्वर .  कभी भी जाना पड़ सकता है  . "  कामरेड बोले .
                   " कहो , मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूँ ? "
                   " मैनें जीवन भर गलतियाँ की ...... , यदि क्षमा कर देते तो ....."
                   " ठीक  है , क्षमा किया . ..... और बोलो क्या चाहते हो ? "
                   " स्वर्ग की इच्छा है , अगर ......"
                   " चलो ठीक है , तुम्हारे लिए स्वर्ग भी ......."
                   " एक बात और थी जगदीश्वर ...."
                   " हाँ हाँ , बोलो ."
                   " स्वर्ग में लाल झंडे के साथ प्रवेश मिल जायेगा न ? "
       जगदीश्वर कुछ नहीं बोले .

गुरुवार, 8 मार्च 2012

* पापियों के साथ रहने की आदत डालो

" कहते हैं जब पृथ्वी पर पाप बढ़ जायेंगे तब आप अवतार लेंगे !  क्या यह सच है जगदीश्वर ?" दास बाबू ने पूछा .
" हाँ , सच है . मैं पृथ्वी पर आ चुका हूँ . तुम्हारे सामने हूँ . " जगदीश्वर बोले .
" तो फिर कुछ करते क्यों नहीं !?"
" क्या करूँ ?!"
" धर्म की रक्षा कीजिये , और क्या ! " दास बाबू ने याद दिलाया .
" धर्म है ही कहाँ जिसकी रक्षा करूँ ?!" जगदीश्वर ने लाचारी बताई .
" तो पाप का नाश कीजिये , पापी  तो हैं , उन्हें मारिये  . "
" कैसे मारूं , ..... रात- दिन करोड़ों पापियों और खूंखार भक्तों  बीच अपने को घिरा पाता हूँ तो खुद मेरी घिग्घी बांध जाती है ."
" फिर मैं क्या करूँ ? "
" तुम भी कुछ नहीं कर सकते हो ......पापियों के साथ ही रहने की आदत डालो भक्त . "

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

स्वर्ग !!!

लल्लू प्रसाद  ने जगदीश्वर से पूछा -  " तनिक ये तो बताइए जगदीश्वर , स्वर्ग होता कैसा है ? "
" स्वर्ग बहुत सुन्दर होता है . " जगदीश्वर बोले .
" वहाँ क्या क्या होता है ? तनिक खुल कर बताइए . "
" सुन्दर अप्सराएँ होतीं हैं , मधुर संगीत होता है , नृत्य - गान होते हैं , देवता लोग सोमरस का मन चाहा सेवन करते हैं , आमोद प्रमोद होता है , नारद जी सूचनाएं लेते - देते रहते हैं , सब लोग आनंद और मद में डूबे रहते हैं .............. "
" अरे तो यों कहिये न कि ...... स्वर्ग भले आदमियों के रहने कि जगह नहीं है . "
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गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

भस्मासुर........

                  " सबसे पहले आप मुंह मीठा कीजिये जगदीश्वर , मेरी नौकरी आज पक्की हो गई है ." रमेश ने मिठाई आगे की .
                  " अरे वाह  !! बधाई . प्रसन्न रहो . तुम्हें आशीर्वाद . "     जगदीश्वर ने मुंह मीठा किया .
                  " रात-दिन मेहनत की ..... तब कंहीं आज यह दिन देखने को मिला है . " रमेश ने बताया .
                  " परिश्रम का फल तो मिलता ही है . अब  खूब मन लगा कर काम करना , आगे और सफलताएँ मिलेंगी ."    जगदीश्वर ने हौसला दिया .
                  " सफलता तो मिल गई . नौकरी पक्की . ..... अब काम - वाम करने की जरुरत नहीं है . "      रमेश बोला .
                  " अरे !! शुभ शुभ बोलो रमेश . कहीं सरकार निकम्मा कह कर निकल दे तो !? "
                  " आप चिंता मत करो  जगदीश्वर , हमारे पास यूनियन है , कोर्ट है , कानून है , वकील है . स्थाई कर्मचारी के पास भस्मासुर की ताकत होती है . एक बार तथास्तु कह देने के बाद सरकार  उससे डरती है . " 

शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

लाचारी !!


                   मंदिर के पीछे बलात्कार हुआ । पीड़ित युवती फटे कपड़ों और तार-तार इज्जत के साथ जगदीश्वर  के सामने पहुंची  -- ‘‘ प्रभु !! .... तुम्हें सब पता है क्या हुआ । तुम्हारे मंदिर के पीछे ही हुआ !!! .... न्याय कीजिए प्रभु । ’’
                ‘‘ शांत  हो जाओ । मैं जानता हूं , मुझे सब पता है ......... , कहो , तुम्हें कितना मुआवजा चाहिए ? "      
               ’’जगदीश्वर ने उदारता की तिजोरी पर हाथ रखते हुए पूछा ।
               ‘‘ मुझे मुआवजा नहीं, न्याय चाहिए । आप समर्थ हैं, उस दुष्ट को कड़ी से कड़ी सजा दीजिए जगदीश्वर ।’’
              ‘‘ मुझे क्षमा करो देवी । केवल मुआवजा देना मेरे हाथ में है । .......  ‘वो’ मेरा परम भक्त है । ’’
             ‘‘ आपका भक्त हुआ तो क्या ‘वो’ कुछ भी कर लेगा !!? ’’
             ‘‘ उसकी भक्ति के आतंक के आगे मैं लाचार हूं देवी । मुआवजे के अलावा मेरे और तुम्हारे पास कोई विकल्प नहीं है । ’’
               ‘‘ तो  ............... ठीक है , ......... जैसी आपकी इच्छा । ........ आप जगदीश्वर हैं । ’’
                       जगदीश्वर ने पांच हजार रुपए दे कर युवती को बिदा किया ।
                  अभी वह कुछ दूर ही गई थी कि दूसरा भक्त आ गया । बोला - ‘‘ अब तो मुआवजा तय हो गया है , चाहो तो पहले ले लो ।  ’’

                                                                                   ------

बाजार में रिश्ते !!


          लड़की ने एक भद्दा सा इशारा  किया , बोली - ‘‘ चलता है क्या ?’’
‘‘ लड़की ! मैं जगदीश्वर  हूं । ’’ चौंकते  हुए जगदीश्वर  ने बताया ।
‘‘ जगदीश्वर  हो या कि परमेश्वर , मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता । माल तो है ना पाकेट में ? ’’
‘‘ मैं तुम्हारे पिता जैसा हूं । ’’
‘‘ मुझे ले जाने वाले ज्यादातर पिता जैसे ही होते हैं ।’’
‘‘ मुझे क्षमा करो देवी । ’’ जगदीश्वर  ने हाथ जोड़ दिए ।
‘‘ बाजार में रिश्ते ले कर मत निकला करो जगदीश्वर   । ’’ लड़की तुनक कर दूसरे आदमी की ओर चल दी ।

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

संयोग !



                  ‘‘ आप से कुछ छुपा तो है नहीं जगदीश्वर , आप मन की हर बात जानते हैं ...... जीतने के बाद मैं पहले अपना घर भरूंगा उसके बाद ही दूसरे काम करूंगा , बस आपकी कृपा रहे । ’’ हार फूल चढ़ाते हुए उम्मीदवार ने हाथ जोड़े ।
                पीछे दूसरा उम्मीदवार भी था , उसने पहले की बात सुन ली ।
               अपनी बारी आने पर वह हाथ जोड़ कर बोला - ‘‘ मैं उसकी तरह झूटा और जल्दबाज नहीं हूं । मैं पहले आपका घर भरूंगा उसके बाद अपना । बस आपकी कृपा रहे । ’’
               दूसरा उम्मीदवार  जीत गया । जगदीश्वर  ने कहा-- "यह संयोग है "।

बुधवार, 9 नवंबर 2011

राजा और प्रजा !!


             " देखिये जगदीश्वर !! अंग्रेजी भाषा का कैसा चस्का लग गया है लोगों को ! हिंदी के अख़बार भी अंग्रेजी के पन्ने छाप रहे हैं ! इस तरह तो आम आदमी की भाषा एक दिन मर जाएगी !! "
             " लगता है तुम हिंदी के लिए बहुत अधिक चिंतित हो ?" जगदीश्वर ने पूछा .
             " हाँ , हिंदी आम आदमी की भाषा है . "
             " अच्छा तो यों कहो न की आम आदमी के लिए चिंतित हो ! "
             " नहीं , दरअसल आम आदमी हमारी व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है . "
             " इसका मतलब ये हुआ की तुम व्यवस्था के लिए चिंतित हो ? " जगदीश्वर ने कुरेदते हुए पूछा .
             " आप समझ नहीं रहे है जगदीश्वर ! अगर हर कोई अंग्रेजी बोलने लगेगा तो हमारे बच्चों के भविष्य का क्या होगा !" 

सोमवार, 19 सितंबर 2011

वेलकम लेटर !!

                    मंदिर परिसर के बाहर आज सोलहवां दिन है पी सी पीपलगाँवकर का . वे रोज शाम चार बजे आ जाते हैं और सात बजे तक बैठे रहते है . कभी कभी आठ भी बज जाता है .
                 जगदीश्वर से रहा नहीं गया , पूछा -- " क्या बात है पी सी ? कोई परेशानी हो तो बताओ ."
               पीपलगाँवकर बोले  - " कुछ नहीं प्रभु , सेवानिवृत्त हो गया हूँ . "
               " तो इसमें दिक्कत क्या है ! .... सब होते हैं .... तुम्हारे जैसे अनेक हैं . "
             " जानता  हूँ . "
             " तो उनसे मिलो , उनके बीच उठो बैठो . तुम्हें अच्छा लगेगा . "
               " मोहल्ले की सीनियर सिटिजन सभा ने मेरा स्वागत किया था और एक वेलकम लेटर भी दिया था . "
                   " अरे वाह !! .... क्या लिखा है वेलकम लेटर में ? "
                   " लिखा है - 'आप कतार में हैं ... कृपया प्रतीक्षा कीजिये . '  ....."
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गुरुवार, 1 सितंबर 2011

समाधान


एक दिन एक दम्पत्ती बदहवास से जगदीश्वर  के पास आए , बोले - ‘‘ प्रभु हमारी लड़की पड़ौस के एक लड़के से प्रेम करने लगी है । ’’

‘‘लड़कियां समझदार होती हैं, वे प्रेम ही करती हैं । ’’ जगदीश्वर ने प्रसन्न होते हुए कहा ।
‘‘ लेकिन हम उस लड़के को कतई पसंद नहीं करते हैं  । ’’
‘‘ तो दिक्कत क्या है , आप लोग भी उसे पसंद करने लगो । ’’
‘‘ आप समझ नहीं रहे हैं प्रभु । दरअसल वो हमारी जाति का नहीं है । ’’
‘‘ तो !? ’’
‘‘ तो आप हमें ऐसा उपाय बताइये कि हमारी बेटी उससे प्रेम करना बंद कर दे , उसे दिन रात बुरा भला कहे , उससे नफरत भी करे , उसे लड़के के नाम से ही उसे चिढ़ होने लगे ...........। ’’
‘‘ ये तो बड़ा आसान है । ’’
‘‘ आसान है !! ...... तो जल्दी बताइये हमें क्या करना होगा ? ’’
‘‘ आप उन दोनों की शादी कर दीजिये । ’’

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

अनुकंपा नियुक्ति


         सरकार ने अनुकंपा नियुक्ति सरल बनाने की घोषणा की । तय किया गया कि कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके परिवार के एक बेरोजगार को तुरंत नियुक्ति मिलेगी ।
       जगदीश्वर  के पडौसी विश्वजीत सिंह शाम  को घबराए से आए , बोले -     ‘‘ जगदीश्वर क्या तुम अपने यहां मुझे रात रुकने दोगे ? प्लीज ! ’’
      ‘‘ हां हां , क्यों नहीं । एक क्या दो रातें रुको । ’’जगदीश्वर बोले .
      ‘‘ एक - दो नहीं , मुझे हर रात तुम्हारे यहां गुजारना पड़ेगी । कहोगे तो किराया दे दूंगा । ’’
      ‘‘ बात क्या है आखिर !!? तुम इतने डरे हुए क्यों लग रहे हो ? !’’
      ‘‘ सरकार ने अनुकंपा नियुक्ति सरल कर दी है । मैं बैठे बिठाए खतरे में आ गया हूं । ’’
      ‘‘ अनुकंपा नियुक्ति से तुम्हें खतरा !! किससे ? ’’
      ‘‘ अपने दो बेरोजगार बेटों से । ’’

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

देशहित में !


     त्योहार पर अस्पतालों के लिए एक दिन के अवकाश  का बहुत आग्रह हुआ तो स्वास्थ्य मंत्री ने जगदीश्वर  से पूछा कि स्वास्थ्य सेवकों को एक दिन की छुट्टी दे दें ?
            जगदीश्वर  बोले - ‘‘ आप मालिक हैं अपने विभाग के । दे कर देख लो । ’’

            मंत्री ने एक दिन का अवकाश  घोषित कर दिया । सारे डाक्टर-नर्स छुट्टी पर चले गए ।

            दूसरे दिन पता चला कि मरने वालों की संख्या शून्य  के करीब चली गई । प्रदेश  के श्मशानों  से धुंआ नहीं उठा ।

            मंत्रीमंडल की बैठक हुई और देश हित को ध्यान में रखते हुए भविष्य में चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में पूर्ण अवकाश  पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया ।



अतीत का बक्सा !


           लल्लन तहखाने में उथल-पुथल मचाए थे । जगदीश्वर  को पता चला तो प्रकट हुए, पूछा - ‘‘ क्या ढूंढ़ रहे हो लल्लन ? ’’
‘‘ अपना अतीत, पता नहीं अम्मा बक्सा कहां रख गईं ! ’’
‘‘ अतीत से तो तुम दुःखी थे ! क्या करोगे उसका ?’’
‘‘ भविष्य बनाने वाला जिन्न उसमें छुपा बैठा है । ’’
‘‘ पत्नी से पूछो, शायद  उसे पता हो । ’’
लल्लन ने पत्नी राबीना को आवाज लगाई । वे बोलीं - ‘‘ यहां शहर  में कहां है वो बक्सा , वह तो गांव के मकान में पड़ा होगा कहीं । ’’
‘‘ छोड़ो लल्लन, वैसे भी तुम उससे मुक्ति ही चाहते थे । ’’ जगदीश्वर  बोले ।
‘‘ नहीं जगदीश्वर, मुझे फौरन गांव जाना होगा । ... आज के युग में अतीत के बिना भविष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है । ’’

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

बंटी का फैसला !

माता-पिता को बेटे के भविष्य की चिंता सता रही थी । भविष्य की चिंता यानी धन की चिंता । कैसे कमाएगा, सुरक्षित कैसे रहेगा, सम्मान कैसे बचा रहेगा आदि ।
‘‘ बंटी राजनीति में जाएगा । बस फायनल । ’’ पिता ने फैसले जैसा कुछ सुनाते हुए कहा ।
‘‘ नहीं , बंटी धर्म के क्षेत्र में अपना करियर बनाएगा । बाबा लोग अब करोड़ों में खेलते हैं, सम्मान और सुरक्षा की भी गारंटी होती है । ’’ मां ने कहा ।
‘‘ बेटे को बाबा बनाओगी !! बाबा !! .... मेरा बेटा बाबा नहीं बनेगा । साफ बात । ’’ पिता को गुस्सा आ गया ।
‘‘ तुम्हें पता भी है कि बाबा ही हैं जो संसार के सारे सुख भोगते हैं । ’’ मां अडी ।
दोनों में बहस बढ़ गई तो तय हुआ कि बंटी से पूछ लेते हैं ।
पिता ने बेटे को बुलाया - ‘‘ बेटा तुम्हारे भविष्य को लेकर हम चिंतित हैं । तुम क्या बनोगे जिसमें धन, सम्मान और सुरक्षा तीनों हो । ’’
‘‘ मैं कामरेड बनूंगा डैड । ’’ कह कर बंटी चल दिया ।

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रविवार, 7 अगस्त 2011

* पद में !

" पद्मे .... सुनों पद्मे .... . " भीड़ के बीच पतिदेव ने पत्नी को पुकारा . सुनते ही पत्नी उनके साथ हो ली .
जब वे लोग चले गए तो देवी ने जगदीश्वर से शिकायती लहजे में कहा - " देखा उन्हें !!! .... अपनी पत्नी को कितने प्रेम से पुकारते हैं ! .... पद्मे .... !  एक आप हैं ...जब देखो आम आदमी की तरह - 'सुनती हो .....सुनती हो' . " 
जगदीश्वर बोले -   " हम प्रेम से पुकारते है देवी ! ...... , अन्यों के लिए जो पदमा है , उनके लिए वो पद-में है.   और ये बात वे उस बेचारी को हर क्षण याद दिलाते रहते हैं.   ..... मनुष्य बहुत शिक्षित और जटिल हो गया है देवी .                     
                                                                 इनसे भ्रमित मत होना . "

बुधवार, 3 अगस्त 2011

* पछतावा !!


                    रात ग्यारह बजे एक (सामान्य) आदमी ने अपनी पत्नी को पीटा और घर से बाहर कर दरवाजा बंद कर लिया । उस औरत को विश्वास था कि उसका प्रेमी तुरंत आ कर उसे सम्हाल लेगा । प्रेमी तो नहीं आया, मोहल्ले का गुण्डा नशे मे धुत्त कहीं से लौट रहा था । उसने देखा तो पूरे सम्मान के साथ उसे ले जा कर अपने घर में शरण  दी । 
          दूसरे दिन सुबह जब तीनों का नशा  उतरा तो उन्हें अपनी अपनी भूल का ज्ञान हुआ । तीनों के मन में पछतावा था, लेकिन .......
                           .........सबसे ज्यादा  उस औरत के मन में  ।

* अख़बार में भगवान .



               रामनवमी भगवान राम का जन्मदिन है सो अखबार के मुख्य पृष्ठ पर राम का बड़ा सा चित्र छापा जा रहा था । लेआउट को अंतिम रूप  दिया जा चुका था कि एक बड़ा विज्ञापन आ गया । कंपनी चाहती थी कि आज रामनवमी के तमाम आफर  के साथ विज्ञापन अखबार के मुखपृष्ठ पर ही छपे । इसके लिये ऊँची  दर पर भुगतान करने को वह तैयार थी । लेकिन संपादक राजी नहीं हुए । 
            कंपनी के आदमी ने मालिक से संपर्क किया ।
            मालिक ने तुरंत आदेश  दिया कि विज्ञापन मुखपृष्ठ पर छापा जाए और भगवान को दूसरे किसी पृष्ठ पर बिना किसी विज्ञापन को हटाए उपलब्ध जगह हो तो दे  दें ।
           ‘‘ खबरों को हटाया नहीं जा सकता है , विज्ञापन हटाना नहीं है , फिर तो कठिन है । ’’ संपादक ने कहा ।
          ‘‘ ठीक है , तो फिर भगवान को हटा दो , विज्ञापन जाने दो वही हमारे भगवान हैं । ’’

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

जनता ने दिए खड़ाऊं !

‘‘ आपकी पार्टी संस्कारों और अनुशासन  वाली पार्टी है । दूसरी पार्टियों में जूते चले तो चले ..... पर आपके यहां भी !! ’’ पत्रकार ने पूछा ।
‘‘ सुधार कीजिये , जूता नहीं खड़ाऊं । ’’ भाई जी ने कहा ।
‘‘ ठीक है , आपके यहां खड़ाऊं मारी गई । ’’
‘‘ मारी नहीं गई , उछाली गई । सुधार कीजिये । ’’ 
‘‘ एक ही बात है भाई जी । ’’
‘‘ एक कैसे है !? .... रामजी ने भरत को अपनी खड़ाऊं दी थी । भरत ने उन्हें गद्दी पर रख कर रामजी के नाम से राज चलाया ...... । ..... सुधार कीजिये  ’’
‘‘ हां , चलाया , तो ? ’’
‘‘ तो क्या ! अरे भई इधर भी जनता ने अपने खड़ाऊं दिये हैं ...... कि  ल्लो .....  गद्दी पर रखो ....... और जनता के नाम पर राज करो मजे में ।  इसमें गलत क्या है ?! आप सुधार कीजिये  . ’’ भाई जी ने भगवान  के फोटो को प्रणाम करते हुए जवाब दिया ।

बुधवार, 27 जुलाई 2011

* रिफिल ....


                कचरे के ढ़ेर में दूसरी रिफिल मिल गई तो उससे रुका नहीं गया , वह फूट पड़ी । बोली - ‘‘ क्या बताऊँ  बहन ! उंचे खानदान की हूं , कीमती पेन में घर था मेरा  , जब तक रही कागज पर मोती उतारे । रखने वाले ने हमेशा  सीने से लगा के रखा , कुछ खास मौकों पर तो मेरी पूजा भी की , देवस्थान पर भी सजाया । कितनी ही बार मेरे माध्यम से खुशियों  की इबारत लिखी गई ...... मेरी पूरी इंक उनकी मर्जी पर खर्च हो गई तो आज ...... उन्होंने ऐसे निकाल कर फेंक दिया......  जैसे मैं एक बोझ हूं !!  एक बार भी नहीं सोचा !!! ’’
         ‘‘ दुःख मत कर बहन । ’’ दूसरी रिफिल ने कहा । ‘‘हमारा क्या है ....  हम तो हैं ही रिफिल । ...... अनुपयोगिता के कारण तो वृद्धाश्रम भरे पड़े हैं । ’’

* सच बात !!


                      ‘‘ लोग कहते हैं कि ईमानदारों को राजनीति में आना चाहिए लेकिन साफसुथरी छबि वालों को कोई पूछता नहीं है ! न इधर चैन है ना उधर । समझ में नहीं आता कि आखिर जनता चाहती क्या है ! ये तुमने कैसी दुनिया और कैसे लोग बना दिए जगदीश्वर  !! ’’
जगदीश्वर  इस समय भी कण कण में बसे हुए थे । उन्होंने सुन लिया , पूछा - ‘‘ ऐसी क्या बात हो गई हरिश्चंद्र  !? क्यों इतना नाराज हो ?! ’’
                   ‘‘ आपने ही कहा था कि ईमानदारी से बढ़ कर कुछ नहीं है जीवन में, सो ईमानदार बना रहा । जनता के कहने से चुनाव लड़ा,  लेकिन वोट नहीं  मिले ।  लोग कहते हैं कि जो आदमी अपने फायदे के लिए कुछ नहीं कर सका वो भला दूसरों के लिए क्या करेगा ! ’’
                  ‘‘ इसमें गलत क्या है हरिश्चंद्र ? ...... सच बात तो यह है कि यदि मैं पूरी तरह ईमानदार रहूं तो मुझे भी ईश्वर कौन मानेगा ? ’’ कह कर जगदीश्वर  मुड़ गए ।

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सोमवार, 25 जुलाई 2011

* इस बार भी विकल्प नहीं !

  एरिया का भाई इंदर हफ्ता वसूलने स्कूल मास्टर दधीच दास  के सामने प्रकट हुआ.  उसे पता चल गया था कि दधीच दास का ब्लड ग्रुप एबी पाजिटिव है । हाथ जोड़ कर बोला - ‘‘ माड़साब आप महारिसी समान हें । इस बार हपते में मेरे-को आपसे रुपिये नईं चइये .......’’
            जनगणना सूचि में व्यस्त दधीच दास ने देखा कि भाई-इंदर के साथ उसके शूटर  भी खड़े हैं । पूछा - ‘‘क्या चाहिये ? मैंने तो दो सौ रुपए रखे हैं हमेशा  की तरह । ’’
          ‘‘ आप तो महारिसी हैं , सास्त्रों में लिखा हे कि पेले कभी आपने अपनी हड्डियां दी थीं । आज मेरे-को आपकी किडनियां चइये । महारिसी , ये चीजें दे कर आप महान बन जाएंगे , अमर हो जाएंगे और मेरे भाई को जिन्दगी मिल जाएगी । ’’ भाई इंदर ने घूरते हुए आग्रह किया ।
          दधीच दास की घिघ्घी सी बंध गई । कुछ देर सोचते रहे, फिर बोले - ‘‘ क्या इस बार भी कोई विकल्प नहीं है ? ‘‘
          ‘‘ नहीं । ’’ इंदर ने दो टूक उत्तर दिया ।

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शनिवार, 23 जुलाई 2011

* अपने भाई !

            दंगे की खबर फैलते ही उसने दुकान बंद की और स्कूटर घर की ओर दौड़ा दिया . अचानक एक मोड़ पर छः-सात लोगों के झुण्ड ने उसे रोका ,"  क्यों बे , कौन है तू ? .... हिन्दू  या मुस्लमान ? ..... नाम बता अपना ....."

           वह डर गया , घिग्घी सी बंध गई , फिर भी इतना तो समझ में आ ही रहा था कि नाम बताने में क्या जोखिम है . 
           दंगाई उसे जानना चाहते थे और ठीक उसी तरह वह भी उन्हें .  पहचान में नहीं आ रहे हैं कि हिन्दू हैं या मुसलमान ! 
           " अबे सेल नाम बता अपना .... वरना मरेगा ...." तलवार और आँखें दिखाते हुए एक बोला .
           " मार दो साले को ....... क्या फर्क पड़ता है ...." दुसरे ने कहा.
            " ऐसे नहीं चलेगा ..... इसकी पेंट खोलो ...... उतार बे ......... अपनी पेंट उतार ......... दिखा साले अपना आई कार्ड ."
          " अबे यार इतना टाइम नहीं है हमारे पास . .... मार दो साले को .... " एक ने तलवार उठाई .
          " एक सेकण्ड .... एक सेकण्ड . देख लो पहले .... कौन है ... पकड़ो साले को ... और उतारो इसकी पेंट . "
          मौत उसके बिलकुल सामने थी . उसे लगा कि वह अब कुछ ही क्षणों का मेहमान है . उसे बेहोशी छाने  लगी ..... दो लोगों ने उसे सड़क पर पटक दिया , बाकि ने उसकी पेंट खींच ली ..... देखा !..... दोबारा देखा ! ............" अरे ! ... ये तो अपना है ! .... अपना भाई ! .... भाई है यार अपना .! ...."
           उसे खड़ा कर हौसला देने के लिए सबने पीठ थपथपाई . एक ने गले लगाया , बोला -" जा ..... निकल जा जल्दी से ..... घर में तेरे बीवी - बच्चे घबराए हुए रह देख रहे होंगे . "
अपने भाई !

प्रेम करो ....



          करमचंद काम पर जाने के लिए निकल रहे थे । देखा कि जूते में मेंढ़क दुबका बैठा है । पता नहीं क्या सूझा , उन्होंने मेंढ़क को तोते के खाली पड़े पिंजरे में डाल कर बंद कर दिया । 
        करमचंद की पत्नी सुलक्षणा को यह बात अच्छी नहीं लगी , बोली - ‘‘ ये क्या !! .... मेंढ़क भी कोई इस तरह पालता है !! लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे ?! ’’
            ‘‘ कहने वाले पागल होंगे तुम्हारी तरह । अरे इतना तो मालूम होना चाहिए कि मेंढ़क हमारी भाषा नहीं समझता है, फिर उसे क्यों कुछ कहेंगे ? ’’ करमचंद ने कहा ।
       ‘‘ मुझे भी मालूम है कि मेंढ़क हमारी भाषा नहीं समझता है । लोग हमें तो कहेंगे।’’ सुलक्षणा बोली ।
       ‘‘ क्या कहेंगे ?! ’’
       ‘‘ यही कि तोता पाला जाता है , मेंढ़क पाल लिया !!’’
       ‘‘ जैसा तोता वैसा मेंढ़क । क्या फर्क है ? ’’
       ‘‘ तोता राम राम बोलता है । ’’
       ‘‘ अपने आप बोलता है ? ’’
       ‘‘ नहीं , उसे सिखाओ तो सीख जाता है और राम राम बोलता है । ’’
       ‘‘ तो इसे सिखा दो , ये भी बोलेगा राम राम । ’’
       ‘‘ मेंढ़क भी कहीं राम राम बोल सकता है !! बात करते हो ! ’’
       ‘‘ तुम पहले से ही मान कर चलोगी तो तुम्हें उसकी राम राम समझ में नहीं आएगी । ’’
        ‘‘ मैं मूर्ख नहीं हूं । तुम ज्यादा बुद्धिमान हो , तुम्हीं सिखा कर बताओ तो जानूं । ’’
       करमचंद सुबह-शाम  जब भी समय मिलता मेंढ़क को राम राम सिखाने लगे ।
      ‘‘ बोल बेटा मेंढ़क राम राम ’’
      ‘‘ टर्र टर्र - टर्र टर्र ’’
      ‘‘ बोल राम राम ’’
      ‘‘ टर्र टर्र ’’
      ‘‘ कितना भी माथा फोड़ लो , वो मेंढ़क है , टर्र टर्र ही करेगा । ’’ सुलक्षणा बोली ।
      ‘‘ इतना जानती हो कि मेंढ़क है, पर ये नहीं समझ रही हो कि वो राम राम ही बोल रहा है । ’’
      ‘‘ अब इतना भी नहीं समझती क्या !!? वो साफ टर्र टर्र ही बोल रहा है ! ’’
      ‘‘ प्रिये , दरअसल तुम अपने चक्षु और ज्ञानपट बंद किए बैठी हो । तोते के प्रेम में तुम्हें उसकी टें-टें राम राम जैसी लगती है । तुम जरा इस मेंढ़क से प्रेम तो करो .... देखो वो भी तुमसे राम राम ही बोलेगा ।
      " मेंढक से प्रेम !! किसी हालत में नहीं . "
      " तो फिर तुम्हें मेंढक की राम राम कभी नहीं मिल सकेगी ."